केरल के पलक्कड के के. राजीव के परिवार की उम्मीद तब बहुत बढ़ गई जब वे ख्यात मद्रास मेडिकल कॉलेज पढ़ाई के 17 वर्षीय
महत्वाकांक्षी मेडिकल छात्र के रूप में 1997 में चेन्नई रवाना हुए।
मेडिकल जगत के लिए उनकी प्रेरणा न तो उनके माता-पिता और न कोई डॉक्टर थे बल्कि दादी थीं, जो प्राय: लोगों को घरेलू उपचार की चीजों जैसे काली चाय या काढ़ा या कोई कोई जड़ी-बूटी देती थीं, जो सर्दी-खासी व पेट से संबंधित गड़बड़ियों के साधारण रोगों में कारगर होती थीं। चूंकि तब वे किशोरवय थे तो दादी उन्हें कामों के लिए दौड़ाया करती थीं, जिसमें ज्यादातर घर के आंगन से कोई जड़ी तोड़कर लाने या कोई सामग्री लाने के काम होते थे। यदि वे वहां उपलब्ध नहीं होतीं तो वे उन्हें पलक्कड के घने जंगलों में उस पौधे के बारे में अच्छी तरह समझाकर भेजतीं। स्वाभाविक रूप से समय के साथ वे विभिन्न जड़ियों सहित कई तरह के पौधों के पारखी बन गए, जो दादी के घरेलू उपचार का अंग होते थे।
दुर्भाग्य से एक विषय के रूप में मेडिसिन कभी उनके बस की बात साबित नहीं हुई! उन्हें बीच में ही मेडिकल की दुनिया छोड़नी पड़ी। लकिे न, चाय उनकी नाकामी की दवा साबित हुई। उन्होंने वहां के छात्रों के प्रोत्साहन के बाद पहला टी स्टाल मद्रास मेडिकल कॉलजे के होस्टल में ही खोला। ये छात्र प्राय: साधारण सर्दी-जुकाम के लिए गोलियों की बजाय प्राकृतिक काढ़ा लेना ही पसंद करते थे। जो वे देते थे वह सिर्फ चाय नहीं थी। स्वाद में बहुत बड़ा फर्क था। पीने वाले उनकी चाय के फ्लैवर की गहराई और विस्तार की बहुत सराहना करते। उन्हें अहसास हुआ कि टी-बैग्स बनाने की प्रक्रिया में गुणवत्ता नहीं डाली जा सकती, क्योंकि राजीव चाय बनाने में सावधानी बरतते और वे चाय को सिरेमिक जार में स्टोर करते थे।
भावी डॉक्टरों को चाय देने से उन्हें स्वास्थ्य के आधुनिक मुद्दों की कुछ जानकारी मिलती और घर पर आयुर्वेदिक जड़ियों का काम करने वाले लोगों से उन्हें उसका समाधान मिलता। मसलन, उन्हें अहसास हुआ कि नाइट शिफ्ट में रातभर जागने वाले डॉक्टर ग्रीन टी के साथ शहद ले सकते हैं, जो न सिर्फ कोलेस्ट्रोल घटाने के लिए अच्छी है बल्कि पाचन भी तेज करने के साथ चक्कर आने जैसी स्थिति को भी काबू में रखती है। उनके पास 62 प्रकार की चाय है, जो आम चाय नहीं है बल्कि स्वाद व सेहत का योग है। वे लगातार और जड़ियां खोजते रहते हैं, जो किसी प्रकार की स्वास्थ्यगत तकलीफ को काबू करने में मददगार हों। मैपल टी, हनी टी और चॉकलेट टी उनके कुछ लोकप्रिय व महंगे पेय है।
जब 2012 में किसी सड़क परियोजना के कारण उनकी दुकान हटाई गई तो उन्होंने किसी तरह चेन्नई सेंट्रल स्टेशन के पास अधिकृत म्युनिसिपल शॉप हासिल कर ली। यह पूरे राज्य में सबसे भीड़भरी जगह है। वहां उन्होंने बोर्ड लगाया ‘दीया स्नैक्स’, जिसकी टैग लाइन थी ‘प्रकृति की ओर लौटें।’
उनकी वेबसाइट चाय की सौ किस्मों का दावा करती है। वे सफेद मिर्च, इलायची, उच्च कोटि की सौंठ व कई अन्य चीजें वे अपने गृह नगर से खरीदते हैं और बाकी वे स्थानीय स्तर पर प्राप्त करते हैं। कोई अचरज नहीं कि कॉफी पीने वालों के राज्य में दो हजार रेलवेकर्मियों के अलावा बड़ी संख्या में ऑफिस जाने वाले लोग व यात्री उनकी हर्बल टी की चुस्कियां ले रहे हैं। इससे उनका रोज का टर्नओवर हजारों में पहुंच जाता है। वे इसके बारे में कुछ कहने के उत्सुक नहीं होते लेकिन, स्थानीय लोग इस आंकड़े को 25 से 30 हजार रुपए प्रतिदिन आंकते हैं। उनका सेट-अप छोटा है लेकिन, बहुत कुशल है। उसमें सिर्फ दस कर्मचारी हैं, जो अपनी चाय को लेकर जुनूनी रवैया रखते हैं। हालांकि, उनका कैटलॉग लंबा है, जिसकी सौ किस्मों से आप अपनी पसंद चुन सकते हैं।
फंडा यह है कि यदि आप गिर जाएं तो खड़े होकर चल पड़ें। कम से कम दूसरी दिशा में तो चल ही सकते हैं, क्योंकि शिक्षा में ड्रॉपआउट का मतलब निश्चित ही जीवन की कामयाबी में ड्रॉपआउट होना नहीं होता।