बहुत बड़ा है संसार

बहुत बड़ा है संसार

सबसे पहले मेरे घर का,
अंडे जैसा था आकार।
चिड़िया
चिड़िया
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।

फिर मेरा घर बना घोंसला,
सूखे तिनकों से तैयार।
तब मैं यही समझती थी बस,
इतना सा ही है संसार।

फिर मैं निकल गई शाखों पर ,
हरी भरी थी जो सुकुमार।
तब मैं यही समझती थी बस,
इतना सा ही है संसार।

आखिर जब मैं आसमान में ,
उड़ी दूर तक पंख पसार।
तभी समझ में मेरी आया,
बहुत बड़ा है यह संसार।

READ  महात्मा गांधी जी पर कविता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.