गांधी बन जाऊँगा
माँ, खादी का चादर दे दे, मैं गाँधी बन जाऊँ,
सब मित्रों के बीच बैठ फिर रघुपति राघव गाऊँ!
निकर नहीं धोती पहनूँगा, खादी की चादर ओढूँगा,
महात्मा गांधी
घड़ी कमर में लटकाऊँगा, सैर सवेरे कर आऊँगा!
छूत अछूत नहीं मानूंगा सबको अपना ही जानूंगा,
एक मुझे तू लकड़ी ला दे टेक उसे बढ़ जायूँगा
मैं बकरी का दूध पिऊँगा, जूता अपना आप सिऊँगा!
आज्ञा तेरी मैं मानूँगा, सेवा का प्रण मैं ठानूँगा!
मुझे रुई की पूरी दे दे, चर्खा खूब चलाऊँ,
माँ, खादी की चादर दे दे, मैं गाँधी बन जाऊँ!
कभी किसी से नहीं लडूँगा ,और किसी से नहीं डरूँगा ,
झूठ कभी मैं कहूँगा ,सदा सत्य की जय बोलूँगा .
माँ, खादी का चादर दे दे, मैं गाँधी बन जाऊँ.